भारतीय पूजा पद्धति में प्राकृतिक वस्तुओं का पूजन और विसर्जन एक परंपरा रही है। प्राचीनकाल से मिट्टी की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की जाती रही है और बाद में उन्हें विसर्जित किया जाता रहा है। वर्तमान में, जहरीले रसायन और अघुलनशील पदार्थों से बनी प्रतिमाओं का उपयोग शुरू हो गया है, जो जल और पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
उक्त विचार श्री उमिया कन्या महाविद्यालय में कल दिनांक 4 सितंबर 2024 को आयोजित Eco-Friendly गणेश मेकिंग वर्कशॉप में प्राचार्या डॉ. अनुपमा छाजेड़ ने वर्कशॉप में सम्मिलित छात्राओं के बीच व्यक्त किए।
प्राचार्या ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि मिट्टी से बने गणेश की मूर्ति को घर पर ही विसर्जित किया जा सकता है, जबकि पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) से बनी प्रतिमाएं पानी में जल्दी नहीं घुलतीं, जिससे भगवान गणेश की प्रतिमा के अलग-अलग हिस्से बिखरने से लोगों की आस्था को ठेस पहुंचती है। इसलिए मिट्टी से बने गणेश की प्रतिमा का उपयोग ही करना चाहिए।
श्री उमिया कन्या महाविद्यालय छात्राओं को उच्च शिक्षा के साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कारों से जोड़ने हेतु सदैव प्रयासरत रहता है। इस उम्र में यदि छात्राओं में प्रतिमाओं को बनाने की कला विकसित कर दी गई तो वो आगे समाज में इसी परंपरा की निर्वाहक बनेंगी।
आज महाविद्यालय में आयोजित वर्कशॉप में लगभग पंद्रह छात्राओं ने भाग लिया। वर्कशॉप का निर्देशन सहायक प्राध्यापक शिवानी चौहान ने किया।