भारत विविध भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का देश, विविधता में एकता की भावना को बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य - डॉ. आरसु

0

आदिगुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की। आठवीं सदी में व्हाट्स एप्प, इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसी तकनीक भी नहीं थी फिर भी सनातन धर्म के प्रचार और अद्वैत वेदांत के दर्शन को बढ़ावा देने के लिए देश के चार कोनों में मठ स्थापित कर उनका सफल संचालन किया और मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने समाधि ली। यह भावनात्मक एकता का सुदृढ़ उदाहरण है। 

उक्त विचार केरल से पधारे हिन्दी भाषा के विद्वान डॉ. आरसु ने श्री उमिया कन्या महाविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा और भावनात्मक एकता विषय पर आधारित परिचर्चा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भारत ज्ञान की भूमि है। हमारे प्राचीन और विद्वत इतिहास के कारण दूसरे देश आज भी हमें ज्ञानी की दृष्टि से देखते है तथा आज वैश्विक मुद्दों पर भी भारत की टीका-टिप्पणी और पहल का इंतजार रहता है। 

उन्होंने कहा कि भारत विविध भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। इस विविधता में एकता की भावना को बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस संदर्भ में, 'भारतीय ज्ञान परंपरा और भावनात्मक एकता' विषय पर आयोजित यह परिचर्चा विशेष महत्व रखती है। 

इस परिचर्चा में भारत के दक्षिण क्षोर (केरल) से डॉ. आरसु के नेतृत्व में बंधुत्व यात्रा पर पधारे हिन्दी भाषा के साहित्यकार, उपन्यासकार, रचनाकार, निबंधकार, कवि, आचार्य, अनुवादक डॉ. एम. के. प्रीता, प्रसन्न कुमारी एन., हरिदासन एम., डॉ. बी. विजय कुमार, प्रो. (डॉ.) पी. गीता, डॉ. रतिश निराला, के. पी. सुधिरा, प्रो. रिमाभाई के. जे., श्रीजा प्रमोद, पी.आई. अजयन, कुन्हीकरन ओ., डॉ. सी.जे. प्रसन्नकुमारी, डॉ. शीना इप्पन, डॉ. अनीश सीरियक, डॉ. के.सी. अजय कुमार, साफिया नारिमुक्किल, सुजाना के., नज़ीर एस ने अतिथि स्वरूप भाग लिया।

मध्य भारत हिन्दी समिति के शोध मंत्री डॉ. पुष्पेंद्र दुबे, डॉ. शीना इप्पन, नज़ीर एस, डॉ. रतिश निराला, श्रीजा प्रमोद आदि ने विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।

परिचर्चा में महाविद्यालय प्राचार्या डॉ. अनुपमा छाजेड़, हिन्दी साहित्य विषय में विद्या वाचस्पति डॉ. अनीता पाटीदार, डॉ. विभा सोनी तथा महाविद्यालय के अन्य संकायों के प्राध्यापकगण उपस्थित थे। साथ ही अन्य महाविद्यालयों से पधारे प्राध्यापकों ने भी परिचर्चा में भाग लिया। 

डॉ. दुबे ने महाविद्यालय में अतिथियों के आतिथ्य की पहल की सराहना करते हुए विषय पर परिचर्चा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। 

अतिथियो ने उनके द्वारा संपादित, अनुवादित तथा संकलित पुस्तकों की प्रतियां महाविद्यालय को उपहार स्वरूप प्रदान की गई। परिचर्चा के प्रारंभ में संचालन डॉ. पुष्पेंद्र दुबे ने किया तथा समापन के दौरान महाविद्यालय की भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ प्रमुख डॉ. अस्मिता जैन ने किया। महाविद्यालय प्राचार्या ने केरल से पधारे समस्त अतिथियों को आभार-पत्र प्रदान कर आभार प्रदर्शन किया।   

Photo Glimpses



























Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)
To Top